(लाइसेंसिंग ऑफिस) की चौकसी करनी है और यह देखना है कि कोई भी व्यक्ति परवाना (लाइसेंस) लेने न जाये । इसे सम्भव करने के विचार से हर जगह कौमी नेताओंको चौकसीके काममें जुट जाना चाहिए । यदि इतना हो जाये तो शायद ही कोई परवाना लेने जायेगा ।
धरनेदारोंको यह स्मरण रखना चाहिए कि उन्हें न किसीपर जबरदस्ती करनी है, और न किसीको धमकी देनी है । उन्हें अपनी लाठियाँ घरमें ही छोड़कर आना है । हमारी शक्ति तो हमारी जिह्वामें है । जिल्लाका उपयोग भी उचित हो । गाली-गलौज नहीं करना है । समझा-बुझाकर नम्रताके साथ प्रत्येक भारतीयको उसका कर्तव्य बताया जाये । क्रूगर्सडॉर्पका मामला' याद रखें । हमें अपना व्यवहार ऐसा रखना चाहिए कि कोई हमपर जोर-जबरदस्ती करनेका झूठा आरोप भी न लगा सके ।
जिनके पास पूरे वर्ष के परवाने हैं वे अपने परवानोंका उपयोग न करें, बल्कि उन्हें संघको सौंप दें ।
जो जेलकी जोखिम नहीं उठा सकते, उनके लिए तो अधिक अच्छा यही है कि वे कुछ दिन फेरी न लगायें । किन्तु परवाना लेने जाना तो बुरी बात है ।
श्री चोकलिंगम बिना परवाना व्यापार करनेके जुर्म में गिरफ्तार कर लिये गये थे । वे शनिवारको सात दिनकी कैद की सजा भोगने जेल गये । उन्होंने जुर्माना देने से इनकार कर दिया था। श्री गॉडफ्रे उनकी पैरवी करने गये थे ।
श्री ईसपजी कानमियापर नया पंजीयन प्रमाणपत्र (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) न लेने का आरोप था। उन्हें [ उपनिवेश छोड़कर चले जानेके लिए ] सात दिनका नोटिस मिला । उनका मुकदमा शनिवारको पेश हुआ । उसमें श्री गॉडफ्रे भी मौजूद थे ।
कैदियोंकी खुराक के बारेमें लिखा-पढ़ी अभी चल ही रही है । अभी पूपू [ मकईके दलिये ] की शिकायत भी दूर नहीं हो पाई है। इसी बीच जेल-निदेशक (डायरेक्टर ऑफ़ प्रिज़न्स) लिखता है कि जनवरी महीने में भारतीय कैदियोंको जो घी दिया जाता था, वह एक खास रियायत थी । धारा घोको इजाजत नहीं है। जोहानिसबर्ग [ जेल ] में अब भी घी दिया जाता है, किन्तु फोक्सरस्ट में नहीं दिया जाता। इसीलिए यह सवाल उठा । श्री काछलियाने इस विषयमें एक कड़ा पत्र' लिखा है, और इंग्लैंडको तार भी भेजे गय हैं। देखें, क्या होता है । खुराक अच्छी मिलती है अथवा नहीं, इससे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। हममें ऐसा संकल्प होना चाहिए कि यदि सरकार यह जुल्म भी ढायेगी तो हम इसे भी बरदाश्त करेंगे ।
स्टैंडर्टन के पुराने व्यापारी श्री ईसा हाजी सुमार विलायत-भ्रमण करके वापस आ गये हैं । मुझे आशा है कि वे संघर्ष में पूरा भाग लेकर मदद पहुँचायेंगे ।
१. देखिए " जोहानिसबर्गको चिट्ठी, पृष्ठ १३-१४ ।
२. देखिए " पत्र : जेल-निदेशकको", पृष्ठ ५३ ।