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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

सब सहनेकी शक्ति आ जाना ही सच्ची जीत है । यह भेद जान लेनेके बाद, सरकार चाहे जितनी बाधाएँ उपस्थित करे, हम उनका प्रतिकार कर सकते हैं । इसलिए, मैं आशा करता हूँ कि भारतीय श्री सैयद अलीके कष्टोंसे घबराने के बजाय आवश्यकता पड़नेपर जेल जानेके लिए आतुर रहेंगे ।

नेटालके कैदी

अब नेटालके कैदियोंको सड़कोंपर पत्थर तोड़ने के लिए बाहर नहीं ले जाया जाता । इससे मुझे तो निराशा हुई है । यदि उन्हें पत्थर तोड़ने का कष्ट [आगे भी ] उठाना पड़ता, तो मुक्ति जल्द मिलती । वे सन्देश भेजते रहते हैं कि उनकी चिन्ता न की जाये। उन्हें चाहे जितनी कैद दी जाये, वे भोगने के लिए तैयार हैं, और उससे प्रसन्न होंगे । हमें उनका खयाल करके उतावली में कोई समझौता नहीं करना चाहिए । उनके लिए यही कहना उचित है; लेकिन हमारे लिए उचित यह है कि हम उन्हें जरूरत से ज्यादा एक मिनट भी जेलमें न रहने दें, और उन्हें जल्दी मुक्त करानेके लिए, जैसे बने वैसे, दूसरे लोग अविलम्ब जेल जायें ।

अक्तूबरमें सच्चा अवसर

जो लोग अपने बहादुर नेताओंकी मुक्ति चाहते हैं, उनका कर्तव्य सीधा-साधा है। अक्तूबरमें बहुत-से भारतीयोंके पानीकी परीक्षा हो जायेगी । सितम्बरके अन्ततक अनेक फेरीवालोंके परवानों (लाइसेंस) की अवधि समाप्त होगी । फिर वे क्या करेंगे ? उनका कर्तव्य है कि यदि अँगूठेके निशान दिये बिना, माँगने भरसे ही परवाने मिल जायें, तो भी वे तबतक परवाने न लें जबतक हमारी माँगें पूरी नहीं की जातीं, और बिना परवानोंके बेधड़क फेरी लगायें । यदि ऐसा किया जायेगा तो यह सरकारको सहन न होगा । निदान, उसे फेरीवालोंको जेल भेजना ही पड़ेगा । यदि फेरीवालोंने इतनी हिम्मत दिखाई तो मुक्ति शीघ्र ही मिलेगी; बल्कि मैं तो दावेके साथ कहता हूँ कि अक्तूबरके मध्यतक हम निश्चिन्त होकर बैठनेकी स्थिति में पहुँच जायेंगे, और जो लोग हमारे लिए जेल गये हैं उन्हें रिहा करा सकेंगे ।

फेरीवालोंका संघर्ष

यह संघर्ष वास्तव में व्यापारियोंके लिए है, और व्यापारियोंमें भी फेरीवालोंके लिए । फेरीवालोंकी मार्फत जीत भी जल्द हो सकती है । हम इस देशमें इस तरहका संघर्ष करके यह सिद्ध कर दे सकते हैं कि फेरी लगाने में अप्रतिष्ठाकी कोई बात नहीं है, उसमें गरीबी भले ही हो । लेकिन यह सोचकर कि गरीबीमें गौरव है, उन्हें अपना सिर ऊँचा रखना चाहिए, शिक्षा भी प्राप्त करनी चाहिए, अपना रहन-सहन ऊँचा रखना चाहिए, और आपस में कलह नहीं करना चाहिए। मैं चाहता हूँ, वे सच्चे अर्थ में शिक्षित बनें। यह उनके हाथमें है । दक्षिण आफ्रिका में उन्हें अभी बहुत-कुछ करना शेष है । मैं उन्हें तथा भारतीय समाजको समझाना चाहता हूँ कि इस संघर्ष से वे राजघरानोंकी-सी प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं ।

धरनेदारोंकी आवश्यकता

फेरीवालोंने जनवरीमें वीरता दिखाई थी । इस समय भी उन्होंने वीरता दिखाई है । फिर भी हम अभी कायर हैं । हमपर नजर रखने की जरूरत है। इसमें अचरजकी कोई बात नहीं है । अतः, हरएक गाँवमें धरनेदार नियुक्त किये जाने चाहिए। उन्हें परवाना दफ्तर