पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१००

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पवित्रता एक (१८) दमयन्ती राजहंसों के पास पड़ी है। नल का इन्तजार कर रही है। आप भी पास बैठ जाइए । अापकी माता है, बह्न है, देवी है। (१९) एक अनाथ अजनवी अभी अपने प्राणों को त्याग, दरख़्त के नोचे सड़क किनारे वह नींद सो रहा है, जिससे कभी नहीं जागेगा अपना शरीर आपके हवाले कर गया। उसका मृत्यु संस्कार आपने करना है। (२०) राजा जनक की सभा लगी है। ऋषेि लोग बैठे हैं । ब्रह्मवादिनी गार्गी आंखों में कपिलवाली लाली लिए हुए आन खड़ी हुई है । सब आश्चर्यवत् हो गए। गार्गी नंगी है, पर बिजली के ज़ोर से यह देवी कह उठी-जानो अभी सब शूद्र हैं चमार हैं । वह जा रही है । अाकाश प्रणाम करता है, पृथिवी काँप रही है। (२१) सफेद ऊन के कोट पहने ये छोटी २ भेड़ें इस टप्पर में दर्शन दे रही हैं। कोई खड़ी, कोई बैठी और कोई फलाँग रही है। (२२) क्या सुहावना अरबी घोड़ा खड़ा है, काठी लगाम से सजा हुआ है। सवार लड़ाई में शहीद हो गया है । यह घरवाले सम्बन्धियों को खबर करने अकेला ही चला आया है । दुलदुले वेयार सामने खड़ा है। कौन इस अनाथ घोड़े को देख नहीं रो उठेगा। पाठक ! क्या हृदयगम्य उद्देश को लिए कुल जगत् में एक ही अपनी मिसाल श्राप खड़ा है । मुख नीचा किए हुए किसी दर्द से पीड़ित हो रहा है। (२३) मालवा देश की महारानी, भारतवर्ष की जान, मीराबाई राज छोड़कर रज पर बैठी है। उसके दिव्य नेत्र खुले हैं । साधारण जगत् कुछ भी नहीं देख रहा है। इतने में राजाजी ने मस्त हाथी दौड़ाया कि इस देवी को कुचल डाले । मैं पास बैठा हूँ । क्या देखता १००