पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१०७

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पवित्रता > इस देश में गंगोत्तरी, हृषिकेश, केदारनाथ, बद्रीनारायण को भी अपवित्र कर दिया | गेरू रङ्ग को न तो पवित्र-धरा परही रहने दिया और न आपके शरीर पर । अब तो गेरुवा रंग मखमल के तकियों पर चमड़े की बग्घियों पर जागीरों और मठों के एकत्र किए हुए खजानों पर रखा है । दासत्व, कमजोरी, कमीनापन. कपट का पर्दा हो रहा है | भगवन् ! तीसरा नेत्र खोलकर ज़रा इस देश के गेरू रंगे उप- देशकों के अन्दर के अंधकार को क्यों नहीं देखते ? सारा देश तो आपके पीछे इनको अापका रूप जानने लगा है। परन्तु ज्यूं २ समय गुज़रता जाता है ल्यू २ मृत्यु और दुःख भूख और नंगा इस देश में बढ़ रहा है । क्या ब्रह्मज्ञान का फल यही है ? महाराज ? सरस्वती देवी से तो आप ६ महीने हारे रहै, क्यों न आपने हार मान ली और उस देबी को अपने सिंहासन पर बिठाया और क्यों न आप इस देश में इस देवी का राज्य अटल कर गए। आप मेरे देशनिवासियों की माता हैं । फिर स्त्री और कन्या को राजतिलक यदि अपने हाथों दे जाते तब क्या शङ्कर का इस देश में जन्म लेना कभी भी ऐसा असम्भव होता जैसा अब हुआ है । मैं आपका बागी पुत्र आपसे प्रेम की लड़ाई करने अाया हूं, आपको यह राज्य अब देना ही पड़ेगा आपके चरण इस पृथ्वी को स्पर्श कर चुके हैं, इस देश की रज को आपका स्वरूप मानकर मैं तो अब लो- -यह राज्य दिए देता हूँ। तक आर्यकन्या देश के धरो और दिलों पर राज्य नहीं करती तब तक इस देश में पवित्रता नहीं आती। जबतक देश में पवित्रता नहीं आती, तबतक बल नहीं पाता । ब्रह्मचर्य का प्राचीन आदर्श मुख नहीं दिखलाता, देश में पवित्रता लाने का ए भगवन् ! अब तो पहिला संस्कार भारत कन्या को राज्यतिलक देना है। सच है देश में अपवित्रता, समष्टिरूपसे है एक दो को यदि