पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१०८

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पवित्रता पवित्रता किंन्हीं और साधनों से अाभी गई तो वह साधन क्या हुए जिन्होंने मेरी और तेरी आँख ठीक न की। ब्रह्मचर्य का उपदेश इस देश में प्राचीन काल से चला आया और अाजकल कोई ही समाज हो, मन्दिर हो, सभा हो, सत्सङ्ग हो जहां इस देश में ब्रह्मचर्य पालन के ऊपर उत्तम ब्रह्मचर्य का से उत्तम व्याख्यान और उपदेश न होते हों, परन्तु उलटा उपदेश अपने दैनिक जीवन को देखो। कल यदि सात फ़ीट लम्बे आदमी थे तब आज ६ फ़ीट रह गए। कल के कालिजों में तो ५ फ़ीट के बालक पढ़ते थे आज ४ फीट के ही रह गये। क्या उलटा परिणाम है । न हृदय में बल, न बुद्धि में शक्ति, न मन में साहस, न उच्च बिचार न पवित्र जीवन, न दया, न धर्म, न धन न माल और इस देश में जहाँ ब्रह्मर्षियों ने संसार के आदि में गाया था :- तेजोऽसि तेजो मयि धेहि । वीर्यमसि वीयं मयि धेहि । बलमसि बलं मयि धेहि । श्रोजोऽस्योजो मयि धेहि । मन्युरसि मन्यु मयि धेहि । सहोऽसि सहो मयि धेहि ।। ६ ।। य० १६ । ६ ।। और अफ्रीका के बहशी जिनको ब्रह्मचर्य का आदर्श कभी स्वप्न में भी नहीं पाया, वे हमसे लम्बे, हमसे चौड़े और हमसे अधिक पराक्रमी हैं। इंगलैंड (England) में जहां इस पर कभी भी इतना ज़ोर न दिया गया, वहां के आजकल के लड़के भी हम से अधिक लम्वे, चौड़े, बलवान, तेजवान् ज्ञानवान विद्वान, सम्पत्तिमान् बुद्धिमान् हैं । हमारी कन्याएँ दुर्बल, पीले रंग की, जवानी में भी बुड्डी की समान, और उस देश की माताएँ और कन्याएँ ६-६ फुट ऊँची सुखर्जी और बल और तेज की हँसी लिए हुए अकेली सारे जगत् को प्रातःकाल चलकर घूमघाम शाम को घर पहुंच जाय । १०८