पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१२

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3 निबन्धकार एवं कवि पूर्णसिंह में दीक्षित होने के साथ ही इनका पहले का वह वेदान्त-पूर्ण लोकोत्तर व्यक्तित्व बदल गया; ये ईश्वर के भक्त, सन्त, दयार्द्र और वात्सल्यपूर्ण हृदय तथा नानक, ईसा और बुद्ध के उपासक के रूप में दृष्टिगोचर होने लगे। भाई वीरसिंह को कविताओं पर ये इतने मुग्ध हुए कि इन्होंने उनका बड़ा सुन्दर अनुवाद अंग्रेजी में किया । जिस समय ये इन्स्टीट्यूट में अध्यापक थे उसी समय उत्तर भारत में क्रान्तिकारी आन्दोलन का काफी जोर था। परिणाम- स्वरूप स्वामी रामतीर्थ के परमभक्त और इनके एक मानसिक गुरुभाई मास्टर अमीरचन्द 'देहली पड्यंत्र' के घक्का मुकदमे में सरकार द्वारा पकड़ लिये गये। बाद में पुलिस को पता चला कि अमीरचन्द के घर में पूर्णसिंह भी आया जाया करते थे, इस कारण पुलिसवालों ने इस मुकदमे में इनकी भी पेशी कर दी । यह बात कटु सत्य थी कि इनका और मास्टर साहब का घनिष्ठतम सम्बन्ध था। देहलो-यात्रा में ये प्रायः इन्हीं के घर ठहरा भी करते थे । इस दशा में पूर्णसिंह के सामने धर्म-संकट उपस्थित हो गया । ये किंकर्तव्य- विमूढ़ हो गये और अपना कोई विचार स्थिर न कर सके । मुकदमा बहुत गम्भीर था । इधर इनके शुभचिन्तकों को यह शंका हुई कि यदि सरदार साहब ने भावना और भावुकता के ग्रावेश में पाकर अदालत के सामने अमीरचन्द से अपना सम्बन्ध अणुमात्र भी स्वीकार किया तो ये भी इस जाल में लपेट उठेगे। इसलिए उन लोगों ने इन्हें मास्टर अमीरचन्द से किसी दशा में भी किसी प्रकार का सम्बन्ध स्वीकार न करने के लिए सावधान किया। अपने साथियों और सम्बन्धियों के समझाने-बुझाने का सरदार पूर्णसिंह के ऊपर प्रभाव पड़ गया और इन्होंने न्यायालय के सामने मास्टर अमीरचन्द से अपना किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं स्वीकार किया, यद्यपि यह सब इनकी बारह