पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१३१

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आचरण की सभ्यता चंद्र और सूर्य भी केवल आटे की बड़ी बड़ी दो रोटियाँ से प्रतीत होते हैं । कुटिया में बैठकर ही धूप, आँधी और बर्फ की दिव्य शोभा का आनन्द आ सकता है । प्राकृतिक सभ्यता के आने ही पर मानसिक सभ्यता आती है और तभी स्थिर भी रह सकती है। मानसिक सभ्यता के होने पर ही आचरण सभ्यता की प्राप्ति सम्भव है, और तभी वह स्थिर भी हो सकती है। जब तक निर्धन पुरुष पाप से अपना पेट भरता है तब तक धनवान् पुरुष के शुद्धाचरण को पूरी परीक्षा नहीं । इसो प्रकार जब तक अज्ञानी का आचरण अशुद्ध है, तब तक ज्ञानवान् के आचरण की पूरी परीक्षा नहीं-तब तक जगत् में, आचरण की सभ्यता का राज्य नहीं। आचरण की सभ्यता का देश ही निराला है। उसमें न शारीरिक झगड़े हैं, न मानसिक, न अाध्यात्मिक । न उसमें विद्रोह है; न जंग ही का नामोनिशान है और न वहाँ कोई ऊँचा है, न नीचा । न कोई वहाँ धनवान् है और न कोई वहाँ निर्धन । वहाँ प्रकृति का नाम नहीं, वहाँ तो प्रेम और एकता का अखंड राज्य रहता है । जिस समय बुद्धदेव ने स्वयं अपने हाथों से हाफिज शीराजी का सीना उलट कर उसे मौन-आचरण का दर्शन कराया उस समय फारस में सारे बौद्धों को निर्वाण के दर्शन हुए और सब के सब आचरण की सभ्यता के देश को प्राप्त हो गए। जब पैगम्बर मुहम्मद ने ब्राह्मण को चीरा और उसके मौन आचरण को नंगा किया तब सारे मुसलमानों को आश्चर्य हुआ कि काफिर में मोमिन किस प्रकार गुप्त था। जब शिव ने अपने हाथ से ईसा के शब्दों को परे फेंककर उसकी आत्मा के नङ्गे दर्शन कराये तब हिन्दू चकित हो गये कि वह नग्न करने अथवा नग्न होनेवाला उनका कौन सा शिव था ? हम तो एक दूसरे में छिपे हुए हैं ! हर एक पदार्थ को परमाणुओं में परिणत करके उसके प्रत्येक परमाणु में अपने आपको १३