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पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१५१

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अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन 2 उस सुन्दर धवल केशधारी वृद्ध के वेश में कहींन्यागरा की दूध धारा तो नहीं फिर रही है यह मस्त वनदेव कौन है । चलता इस लटक से है मानो यही इस वन का राजा या गन्धर्व है। पत्ता पत्ता, कली कली, नली नली, डाली डाली, तने तने को यह ऐसी रहस्य- पूर्ण दृष्टि से देखता है मानो सब इसी के दिलदार और यार हैं ।। सामने से वे दो कृपक-महिलाये दूध की ठिलियाँ उठाये गाती हुई: आती हैं। क्या ही अलौकिक दृश्य है। औरों को तो ये दो अबलायें अस्थि और मांस की पुतलियाँ ही प्रतीत होती हैं, परन्तु हमारे मस्तराम की आश्चर्य भरी आँखों को वे केवल बाँस की पोरियाँ ही दीखती हैं। उसकी निगृढ दृष्टि उनसे लड़ी। वे दोनों इस वृद्ध-युवक को अावारा समझ कुछ खफा हुई, कुछ शरमाई और कुछ मुसकराई। उसने उनके मतलब को जान लिया । वह हँसा, खिलखिलाया और सलाम किया। नयनों से कुछ इशारे किये; आँसू बहाये। किसी की प्रशंसा की, कोई याद अाया, किसी से हाथ मिलाया और उसे दिल दे दिया । यह दृश्य हमारे मस्त कवि का एक काव्य हुआ। वे दो खोखले वृक्ष, वेश बदल कर और वृद्ध स्त्रियों का रूप बनाकर, सामने नजर आये। वे दोनों वृद्धायें हाथ में हाथ मिलाये कुछ अलापती जा रही हैं। उसने जिन दो पूर्व युवतियों, हुस्न की परियों, विकसित कलियों, को देखकर अपना काव्य-प्रवाह बहाया था उसी पवित्र काव्य-गङ्गा को वृक्षों के चरणों में भी छोड़ दिया। वह सौन्दर्य का कितना बड़ा पुजारी है। वह हर वस्तु में सुन्दरता ही सुन्दरता देखता है। क्यों नहीं, तत्त्ववित् है न । उसके अनुभव में अाया है कि उसकी एकमात्र प्यारी नाना रूपों में प्रत्यक्ष हुई है। प्रत्येक वस्तु सुन्दर है—क्या बाँस की लम्बी लम्बी पोरियाँ और क्या वट के खोखले तने। या तो संसार की दृष्टि ही अपूर्ण है, या मेरी ही दृष्टि मदमाती है। उनमें अन्तर अवश्य है । जो आँख हर आँख में u , १५१