पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१५२

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अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन . " अपने ही प्यारे को देखती है वह भला तुम्हारी कला के पैमानों के कारागार में कैसे बन्द हो सकती है। बस सौन्दर्य का सच्चा पुजारी यही है । यह सब को सदा यही सुनाता है—“तुम भले, तुम भले" ।। अमेरिका के वन में नहीं, जीवन के अरण्य में यह कौन जा रहा है ? यह प्रकृति का बंभोला कौन ? यह वन का शाहदौला है कौन ? यह इतना शरीफ अमीर होकर ऐसा रिन्द फकीर है कौन ? अमेरिका 'वही मूर्ख [ बहिर्मुख ], तत्त्वहीन, मशीन-रूपी नरक में यह जीता जागता ब्रह्मज्ञानरूपी स्वर्ग कौन है ? इसकी उपस्थितिमात्रसे मनुष्य की आभ्यन्तरिक अवस्था बदल जाती है । अमेरिका को बहिर्मुख सभ्यता को लात मार कर, बिरादरी और बादशाह से बागी होकर, कालीनों को जला कर, महलों में आग लगा कर यह कौन जाड़ा मना रहा है ? प्रभात की फेरी वाला, जङ्गल का जोगी, अमेरिका का स्वतंत्र और मस्त फकीर वाल्ट बिटमैन अपनी काव्यरचना करता हुआ जा रहा है । वह कोमल और ऊँचे, लम्बे और गहरे, स्वरों में एक संदेसा देता जा रहा है । सभ्यता के नगरों से यह जोगी जितनी ही दूर होता जाता है उसका स्वर उतना ही गम्भीर होता जाता है। वास्तव में मनुष्य स्वतन्त्रताप्रिय है। किसी प्रकार के दासपन को वह नहीं सह सकता। आजकल अमेरिका में लोग अमीरी से तङ्ग श्रा गये हैं। उनकी हँसी एक प्रकार की मिस्सी है। जो किसी को मुख दिखाना हुआ झट मल ली । वहाँ घर और वस्त्रों को कफन और कब्र बनाकर मनुष्य-जीवन का प्रवाह दबाया जाता है। चमकता हुआ कुलदार ही इस बाह्य जीवन को स्थिर रखने का वहाँ खुदा है। जैसे भारतवासी फोटो उतरवाते समय अोठों और मूछों के कोण और कोटों के किनारे सँभालते हैं उसी तरह आधुनिक कलदार- सभ्यता (Dollar-Civilisation) में जीते जागते मनुष्यों को सुन्दर फोटो रूप बनकर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है। उनके १५२