पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१५३

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अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन आचरण हृदय-प्रेम की ताल में तुले नहीं होते, वे कृत्रिम होते हैं । वहाँ काव्य के नृसिंह भगवान् हिटमैन ने अपने उच्चनाद से हिन्दुओं की ब्रह्मविद्या और ईरान की सूफी विद्या को एक ही साथ घोषित किया है । वाल्ट ह्विटमैन के मत में वह मनुष्य ही क्या जो ब्रह्म- निष्ठ नहीं। वह एक मनुष्य के जीवन में मनुष्यमात्र का जीवन और मनुष्य मात्र के जीवन में एक मनुष्य का जीवन देखता है। उसके काव्य का प्रवाह अाकाशवत् सार्वभौम है। जैसे आकाश समस्त नक्षत्र आदि को उठाये हुए है उसी तरह उसका काव्य सब चर और अचर, नर और नारी को, चमकते दमकते तारों की तरह, अपने में लपेटे हुए है । वह सब के मन की कहता है और सब उसको अपने मन की बात बताते हैं । गरीबों को अमीर और अमीरों को गरीब करनेवाला कवि यही है । अपने आनन्द की मस्ती में उसे काव्य की तुकबन्दी भी बन्धन प्रतीत होती है। वह प्रत्येक दोहे-चौपाई को पिङ्गल के नियम की तराजू में नहीं, किन्तु अपने हृदयानन्द के ताल में तौलता है । जो लोग मिश्र के पिरीमिड़ को उत्तम कला कौशल का नमूना मानते हैं उनकी सुन्दरता देखने की दृष्टि परदानशीनों की सी हैं। प्रकृति के बाह्य अनियमित दृश्य इन परदानशीनों के नियमित दृश्यों से कहीं बढ़ चढ़कर हैं । जो भेद समुद्र की छाती के उभार के प्रेमियों और एक युवती के वक्षस्थल के उभार के प्रेमियों में है, वही भेद हिटमैन के सदृश स्वतन्त्र काव्यप्रेमियों और तुकबन्दी के प्रेमियों में है। बाग बनाना तो मानुषी कला है, और जङ्गल बनाना दिव्य कला है | चित्र बनाना तो जीतों को मुर्दा बनाना है और मुर्दा प्रकृति को जीवित संसार बना देना ब्रह्मकला है । और कवि तो केवल चित्र बनाते हैं, परन्तु यह कवि जीते जागते प्राणियों को अपने काव्य में भरता है। नीचे हम वाल्ट हिटमैन की पोयम्स श्राव जॉय ( Poems of Joy ) नामक कविता के कुछ खण्डों का तरजुमा, नमूने के तौर पर, देते हैं १५३