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पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१५५

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परिशिष्ट- शब्दार्थ सच्ची वीरता जिसमें मुहम्मद सत्वगुण-प्रकृति के तीन गुणों में प्रधान गुण । हरा की कन्दरा -अरब देश में हिरा पहाड़ की गुफा, साहब ने एकान्त चिन्तन किया था। पैगाम-सन्देश । सारंगी-एक बाजा । अल्लाहू अकबर-ईश्वर महान् है । अगम्य-पहुँच के बाहर, कठिन । जर्क-बर्क-तड़क-भड़क वाला, चमकीला । कुर्बान-निछावर । पिंडोपजीवी-दूसरे के दिये हुए टुकड़े से जीवन निर्वाह करनेवाला । जरी-सोने के तारों आदि से काम किया हुआ कपड़ा । शाहंशाह- जमाना-सम्राट का प्रताप । जार्ज-इङ्गलैंड के राजाओं की उपाधि । अमरसन-(एमर्सन ) अमेरिका का प्रसिद्ध विचारक । निर्लिप्त-जो किसी से कुछ सम्बन्ध न रखे, आसक्ति-रहित । मंसूर-जिसे ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो । यहाँ पर एक प्रसिद्ध सूफी सन्त, जो फारस में नवीं शताब्दी में हुए थे । काफिर - मुसलमानों के अनुसार उनसे भिन्नधर्म मानने वाला, विधर्मी, दुष्ट । कलाम वाक्य । अनलहक-मैं खुदा हूँ । भगवान् शंकर-अद्वैत दर्शन के प्रतिष्ठापक शंकराचार्य । कापा- लिक--मध्य युग के शिव के उपासक वाम मार्गी, जो मनुष्य की खोपड़ी में खाते-पीते हैं । बगोले -भँवर की तरह चक्करदार घूमते हुए हवा के बवंडर । हरकत-चेष्टा, गति । कुदरत-प्रकृति । पोप- ईसाई धर्म के रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय के धर्माचार्य । गुस्ताखी- ढिठाई, अपराध । ब्रह्मवाक्य-ईश्वर की वाणी । पाबन्दी-अादेश का पालन करना । अटक-पंजाब की एक नदी । शिकस्त-पराजय । १५५