पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

एल्प्स-योरप का एक पहाड़ । कारनामें-युद्ध-सम्बन्धी कार्य । इल- हाम-ईश्वरीय प्रेरणा । जलाल-प्रभाव, अातंक । रौनक-चमक दमक, सुहावनापन । कमाल-अनोखा काम । लिबास-वेष । क्र से- ड्ज-ईसाइयों का धर्मयुद्ध । जारियो-रुदन करना । नौटिंगगेल- बुलबुल । परन्द-पक्षी । देदीप्यमान- चमकता हुआ । गारों- गड्ढों। ड्राइङ्ग हालके वीर -- तसवीर में चित्रित वीर-चित्रों के समान केवल दिखावे के वीर। परले दरजे-अत्यधिक । मरकज- केन्द्र । पालिसी-नीति । मरियम-ईसा की माता । शाहंशाहहकीकी-बाद- शाह का सगा-सम्बन्धी । सलीब-सूली का तख्ता । जायल-विराट् । मखौल-मजाक, खेल । गर्क - डूबा हुआ, मग्न । कारलायल- अंग्रेजी का प्रसिद्ध लेखक । फिजिक्स-भौतिक-विज्ञान ' नेपोलियन- फ्रांस का वीर सम्राट । इत्तिफाक-संयोग । बगावत-विद्रोह । सब्ज वर्को - हरे पन्नों, हरियाली ( अानन्द ) से भरा वातावरण । जार- रूसका बादशाह । हीरो-नायक । नफरत-घृणा । द्वैतदृष्टि-हम दूसरे, तुम दूसरे की भावना । कूक-गान । मलवा-( Stuff) सत्व, तैयारी। कन्यादान बपतिस्मा-ईसाई धर्म में दीक्षित होने का संस्कार । मसीहा- मरे को जीवित करने की शक्ति रखनेवाला। मदुमे--मनुष्य । दीदा-दृष्टि । पंज-ए-मिजगा-आँखों की पलकें । हाथ खाली मदु मे० -आँखों के लिए दर्शनीयमूर्ति मनुष्यों से भला खाली हाथ क्या मिला जाय, कम से कम आँख की बरौनियों में अश्रु की लड़ियों के रूप में मोतियों की एक माला तो अवश्य हो । समाधिस्थ-मन को ब्रह्म पर केन्द्रित कर योग की अन्तिम अवस्था में स्थित । निर्विकल्प- वह ज्ञान जिसमें आत्मा और ब्रह्म की एक रूपता का अखंड बोध हो । तिमिराच्छन्न-अंधकार से ढका हुअा। पीर-महात्मा, सिद्ध । पैगम्बर-ईश्वर का दूत । श्रौलिया-सन्त । पतिवेदन-पति को प्राप्त १५६