पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/२३

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प्रस्तुत संग्रह निबन्धकार एवं कवि पूर्णसिंह बार हिन्दी-जगत् के सामने आ रहा है । ये निबन्ध प्रायः हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों में पाये जाते हैं पर उन पुस्तकों में संगृहीत तथा इस पुस्तक में मुद्रित निबन्धों के पाठ में पाठकों को अध्ययन करते समय काफी अन्तर मिलेगा । पाठ्य-पुस्तक के सम्पादकों ने इनके निबन्धों को स्थान देते समय उनके मूल रूप में काफी परिवर्तन और कहीं परिवर्तन भी कर दिया है । मुझे यह नीति पसन्द नहीं है । मैंने इस संग्रह में इनके सभी निबन्ध उसी रूप में संकलित किये हैं जिस रूप में ये आज से ४६ वर्ष पूर्व पत्रों में प्रकाशित हुए थे । इस कारण इन निबन्धों में विद्वानों को पढ़ते समय लिंग और वाक्य-संगठन- सम्बन्धी अशुद्धियाँ मिल सकती हैं, मैंने उनका संशोधन करना लेखक और भाषा के इतिहास के साथ अन्याय समझा । पूर्णसिंह की मातृभाषा पंजाबी थी, इसलिए इन लेखों में व्याकरण-सम्बन्धी त्रुटियाँ मिल जाना स्वाभाविक बात है; हमें तो हिन्दी के लिए यह गौरव समझना चाहिए कि इन्होंने हिन्दी में लिखा । वस्तुतः ये शुद्ध नागरी लिपि नहीं लिख पाते थे और उर्दू लिपि में अपने लेख लिखा करते, बाद में उनका उल्था नागरी लिपि में होता था। किन्तु अाश्चर्य इस बात का है कि आचार्य द्विवेदी जी के सम्पादकत्व में भी 'सरस्वती' के लेखों में शब्दों की एकरूपता नहीं पायी जाती थी, जैसा कि हमें अध्यापक पूर्णसिंह के लेखों में देखने को मिलता है । अनुस्वार, स्वर और व्यंजन की बात तो छोड़िए, एक ही लेख में 'यूरप' और 'यूरोप' जैसी विभिन्नतायें [ दे. 'सच्ची वीरता' पृष्ट ३३ ] भी पायी जाती है । आचार्य पं० पद्मसिंह शर्मा के लेख के अनुसार इनका 'पवित्रता' निबन्ध का उत्तरार्ध अप्रकाशित है और प्राप्त निबन्ध अधूरा ही है । अध्यापक पूर्णसिंह अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू तथा संस्कृत अादि कई भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे । ऐसी दशा में इनके निबन्धों में इन तेइस