पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/३०

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भूमिका सकता है, किन्तु इन निबंधों में प्रस्तुत किया गया विषय का निरूपण भी हुआ है और लेखक उसे भी अपने व्यक्तित्व के साथ साथ रखें हुए हैं। अंग्रेजों के निबन्धकार वैयक्तिकता का गाढ़ा रंग चढ़ाने के लिए इधर-उधर की बहुत सी बातें कहते हैं, उनके निबंधों में अभिष्ट विषय और विषायान्तर में प्राय: खो जाया करता है। हिन्दी निबंध में यह बात नहीं है। उनमें व्यक्तित्व चित्रण के उद्देश्य से किया हुआ विषयांतर यथाप्रसङ्ग होता है और बहुत दूर तक नहीं जाता जिससे अभिष्ट विषय का तारतम्य उसके कारण टूट नही ं पाता।