पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/५४

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सच्ची वीरता and as if it were imerrily, he advances to his own music, alikein frightful alarms and in the tipsy mists of universal dissoluteness,"9 मंसूर ने अपनी मौज में आकर कहा कि-"मैं खुदा हूँ।" दुनिया के बादशाह ने कहा-"यह काफिर है।" मगर मंसूर ने अपने कलाम को बन्द न किया। पत्थर मार मारकर दुनिया ने उसके शरीर को बुरी दशा की; परन्तु उस मर्द के हर बोल से यही शब्द निकले-"अनलहक'-"अहं ब्रह्मास्मि" "मैं ही ब्रह्म हूँ"। मंसूर का सूली पर चढ़ना उसके लिये सिर्फ खेल था। बादशाह ने समझा कि मंसूर मारा गया । शम्स तबरेज को भी ऐसा ही काफिर समझ कर बादशाह ने हुक्म दिया कि इसकी खाल उतार दो। शम्स ने खाल उतारी और बादशाह को, दाजे पर आए हुए कुत्ते की तरह भिखारी समझकर, वह खाल खाने के लिए दे दी। देकर वह अपनी यह गजल बराबर गाता रहा- "भीख माँगनेवाला तेरे दरवाजे पर आया है; ऐ शाहेदिल ! कुछ इसको दे दे।” खाल उतार कर फेंक दी ! वाह रे सत्पुरुष ! भगवान् शंकर जब गुजरात की तरफ यात्रा कर रहे थे तब एक कापालिक हाथ जोड़े सामने आकर खड़ा हुआ। भगवान् ने कहा "माँग, क्या माँगता है ?” उसने कहा भगवन् ! आज कल के राजा लोग बड़े कंगाल हैं। उनसे अब हमें दान नहीं मिलता। आप ब्रह्मज्ञानी और सबसे बड़े दानी हैं । इसलिए मैं आप के पास आया हूँ। आप अपनी कृपा से मुझे अपना सिर दान करें जिसकी भेंट १-वीर का मस्तिष्क इतना सन्तुलित होता है कि कोई भी बाधा उसकी इच्छा-शक्ति को डिगा नहीं सकती; आनन्द-पूर्वक, हँसते-खेलते वह अपनी ही धुन में मस्त भयानक चेतावनी और मादक विश्वव्यापी विषयासक्ति के बीच समानरूप से निर्लिप्त आगे बढ़ा चला जाता है। है 2