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पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/५६

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सच्ची वीरता लोग ब्रह्म-वाक्य से भी बढ़कर समझते थे और पोप को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे । लाखों ईसाई साधु-संन्यासी और यूरप के तमाम गिर्ने पोप के हुक्म की पाबन्दी करते थे । जिस तरह चूहे की जान बिल्ली के हाथ में होती है उसी तरह पोप ने यूरपवासियों की जान अपने हाथ में कर ली थी। इस पोप का बल और आतंक बड़ा भयानक था । मगर जरमनी के एक छोटे से मंदिर के एक कंगाल पादरी की आत्मा जल उठी । पोप ने इतनी लीला फैलाई थी कि यूरप में स्वर्ग और नरक के टिकट बड़े बड़े दामों पर बिकते थे । टिकट बेच बेच कर यह पोप बड़ा विषयी हो गया था। लूथर के पास जब टिकट बिक्री होने को पहुँचे तब उसने पहले एक चिट्ठी लिखकर भेजी कि ऐसे काम झूठे तथा पापमय हैं और बन्द होने चाहिएँ । पोप ने इसका जवाब दिया-"लूथर ! तुम गुस्ताखी के इस बदले आग में जिन्दा जला दिये जानोगे ।" इस जवान से लूथर की आत्मा की आग और भी भड़की । उसने लिखा-"अब मैंने अपने दिल में निश्चय कर लिया है कि तुम ईश्वर के तो नहीं किंतु शैतान के प्रतिनिधि हो । अपने आपको ईश्वर के प्रतिनिधि कहनेवाले मिथ्यावादी ! जब मैंने तुम्हारे पास सत्यार्थ का संदेश भेजा तब तुमने अाग और जल्लाद के नामों से जवाब दिया । इससे साफ प्रतीत होता है कि तुम शैतान की दलदल पर खड़े हो, न कि सत्य की चट्टान पर । यह लो तुम्हारे टिकटों के गढ़े (Emparchmented Lies) मैंने आग में फेंके ! जो मुझे करना था मैंने कर दिया; जो अब तुम्हारी इच्छा हो करो । मैं सत्य को चट्टान पर खड़ा हूँ।” इस छोटे से संन्यासी ने वह तूफान योरप में पैदा कर दिया जिसकी एक लहर से पोप का सारा जंगी बेड़ा चकनाचूर हो गया। तूफान में एक तिनके की तरह वह न मालूम कहाँ उड़ गया। महाराज रणजीतसिंह ने फौज से कहा-"अटक के पार जायो !