पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/५७

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सच्ची वीरता अटक चढ़ी हुई थी और भयङ्कर लहरें उठ रही थीं। जब फौज ने कुछ उत्साह जाहिर न किया तब उस बीर को जरा जोश आया । महाराज ने अपना घोड़ा दरिया में डाल दिया। कहा जाता है कि अटक सूख गई और सब पार निकल गये । दुनिया में जंग के सब सामान जमा हैं । लाखों आदमी मरने- मारने को तैयार हो रहे हैं । गोलियाँ पानी की बूंदों की तरह मूसल- धार बरस रही हैं । यह देखो, वीर को जोश आया । उसने कहा- "हाल्ट' (ठहरो)। तमाम फौज निःस्तब्ध होकर सकते की हालत में खड़ी हो गई । एल्प्स के पहाड़ों पर फौज ने चढ़ना ज्योंही असम्भव समझा, त्योंहो वीर ने कहा-"एल्प्स है ही नहीं" फौज को निश्चय हो गया कि एल्प्स है ही नहीं और सब लोग पार हो गये ! एक भेड़ चरानेवाली और सतोगुण में डूबी हुई युवती कन्या के दिल में जोश आते ही कुल फ्रांस एक भारी शिकस्त से बच गया । अपने आपको हर घड़ी और हर पल महान् से भी महान् बनाने का नाम वीरता है। वीरता के कारनामे तो एक गौण बात हैं। असल वीर तो इन कारनामों को अपनी दिनचर्या में लिखते भी नहीं। 'दरख्त तो जमीन से रस ग्रहण करने में लगा रहता है । उसे यह ख्याल ही नहीं होता कि मुझमें कितने फल या फूल लगेंगे और कब लगेंगे। उसका काम तो अपने आपको सत्य में रखना है सत्य को अपने अंदर कूट कूट कर भरना है और अंदर ही अंदर बढ़ना है । उसे इस चिंता से क्या मतलब कि कौन मेरे फल खायगा या मैंने कितने फल लोगों को दिये hue वीरता का विकास नाना प्रकार से होता है । कभी तो उसका विकास लड़ने-मरने में, खून बहाने में, तलवार तोप के सामने जान गँवाने में होता है; कभी प्रेम के मैदान में उनका झंडा खड़ा होता है । कभी साहित्य और संगीत में वीरता खिलती है। कभी जीवन के