पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/६४

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सच्ची वीरता , सतोगुण में गुजर गई थी। लोग समझते थे कि वह एक मामूली आदमी है । एक दफे इत्तिफाक से दो-तीन फसलों के न होने से इस फकीर के आस पास के मुल्क में दुर्भिक्ष पड़ गया । दुर्भिक्ष बड़ा भयानक था। लोग बड़े दुखी हुए । लाचार होकर इस नंगे, कंगाल फकोर के पास मदद माँगने आए। उसके दिल में कुछ खयाल हुआ। उनकी मदद करने को वह तैयार हो गया। पहले वह अोसाका नामक शहर के बड़े-बड़े धनाढ्य और भद्र' पुरुषों के पास गया और उनसे मदद माँगी। इन भलेमानसों ने वादा तो किया, पर उसे पूरा न किया। अोशियो फिर उनके पास कभी न गया। उसने बादशाह के वजोरों को पत्र लिखे कि इन किसानों को मदद देनी चाहिए । परन्तु बहुत दिन गुजर जाने पर भी जवाब न. आया । अोशियो ने अपने कपड़े और किताबें नीलाम कर दी । जो कुछ मिला, मुट्ठी भरकर उन आदमियों की तरफ फेंक दिया । भला इससे क्या हो सकता था ? परन्तु अोशियो का दिल इससे पूर्ण शिव रूप हो गया । यहाँ इतना जिक्र कर देना काफी होगा कि जापान के लोग अपने बादशाह को पिता की तरह पूजते हैं । उनके आत्मा की यह एक आदत है । ऐसी कौम के हजारों आदमी इस वीर के पास जमा हैं । प्रोशियो ने कहा-"सब लोग हाथ में बाँस लेकर तैयार हो जात्रो और बगावत का झंडा खड़ा कर दो।” कोई भी → व चरा न कर सका । बगावत का झंडा खड़ा हो गया । श्रोशियो एक बाँस पकड़कर सबके आगे किसोटो जाकर बादशाह के किले पर हमला करने के लिये चला । इस फकोर जनरल की फौज की चाल को कौन रोक सकता था ? जब शाही किले के सरदार ने देखा तब उसने रिपोर्ट की और आज्ञा माँगी कि ओशियो और उसकी बागो फौज पर बंदूकों की बाढ़ छोड़ी जाय ? हुक्म हुआ कि "नहीं, अोशियो तो कुदरत के सब्ज वर्को को पढ़नेवाला है । वह किसी खास बात के