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पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/६५

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सच्ची वीरता लिये चढ़ाई करने आया होगा । उसको हमला करने दो और श्राने दो ।” जब ओशियो किले में दाखिल हुआ तब वह सरदार इस मस्त जनरल को पकड़कर बादशाह के पास ले गया। उस वक्त श्रोशियो ने कहा-राजभांडार, जो अनाज से भरे हुए हैं, गरीबों की मदद के लिये क्यों नहीं खोल दिये जाते? जापान के राजा को डर सा लगा। एक वीर उसके सामने खड़ा था, जिसको आवाज में दैवी शक्ति थी। हुक्म हुया कि शाही भांडार खोल दिये जायँ और सारा अन्न दरिद्र किसानों को बॉटा जाय । सब सेना और पुलिस धरी की धरी रह गई । मंत्रियों के दफ्तर लगे के लगे रहे । योशियो ने जिस काम पर कमर बाँधी उसको कर दिखाया । लोगों को विपत्ति कुछ दिनों के लिये दूर हो गई। अोशियो के हृदय की सफाई, सचाई और दृढ़ता के सामने भला कौन ठहर सकता था ? सत्य की सदा जीत होती है। यह भी वीरता का एक चिह्न है । रूस के जार ने सब लोगो को फाँसी दे दी । किन्तु टाल्सटाय को वह दिल से प्रणाम करता था; उनकी बातों का अादर करता था । जय वहीं होती है जहाँ हृदय की पवित्रता और प्रेम है । दुनिया किसी कूड़े के ढेर पर नहीं खड़ी कि जिस मुर्ग ने बाँग दी वही सिद्ध हो गया । दुनिया धर्म और अटल प्राध्यात्मिक नियमों पर खड़ी है । जो अपने अापको उन नियमों के साथ अभेद करके खड़ा हुआ वह विजयी हो गया । अाजकल लोग कहते हैं काम करो, काम करो । पर हमें तो ये बातें निरर्थक मालूम होती हैं। पहले काम करने का बल पैदा करो- अपने अन्दर ही अन्दर वृक्ष की तरह बढ़ो । अाजकल भारतवर्ष में परोपकार करने का बुखार फैल रहा है। जिसको १०५ डिग्री का यह बुखार चढ़ा वह अाजकल के भारतवर्ष का ऋषि हो गया । अाजकल भारतवर्ष में अखबारों की टकसाल में गढ़े हुए वीर दर्जनों मिलते हैं । जहाँ किसी ने एक-दो काम किए और आगे बढ़कर छाती दिखाई तहाँ ६५