पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/७२

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कन्या-दान और सोहने नौजवान को अपना दिल चुपके चुपके पेड़ों की आड़ में, या नदी के तट पर, या वन के किसी सुनसान स्थान में, दे देती है । अपने दिल को हार देती है मानो अपने हृत्कमल को अपने प्यारे पर चढ़ा देती है; अपने आपको त्याग कर वह अपने प्यारे में लीन हो जाती है । वाह ! प्यारी कन्या तूने तो जीवन के खेल को हारकर जीत लिया । तेरी इस हार की सदा संसार में जोत ही रहेगी। उस नौजवान को तू प्रेम-मय कर देती है। एक अद्भुत प्रेम-योग से उसे अपना कर लेती है । उसके प्राण की रानी हो जाती है। देखो ! वह नौजवान दिन-रात इस धुन में है कि किस तरह वह अपने आपको उत्तम से उत्तम और महान् से महान् बनाये-वह उस वेचारी निष्पाप कन्या के और पवित्र हृदय को ग्रहण करने का अधिकारी हो जाय। प्रकृति ऐसा दान बिना पवित्रात्मा के किस को नहीं दे सकती । नौजवान के दिल में कई प्रकार की उमङ्गै उठती हैं। उसको नाड़ी नाड़ी में नया रक्त, नया जोश और नया जोर आता है। लड़ाई में अपनी प्रियतमा का खयाल ही उसको वीर बना देता है । उसी के ध्यान में यह पवित्र दिल निडर हो जाता है । मौत की जीतकर उसे अपनी प्रियतमा को पाना है। The Paradise is under the Shade of Swords. 3 ऊँचे से ऊँचे अादर्श को अपने सामने रखकर यह राम का लाल तन-मन से दिन-रात उसके पाने का यत्न करता है। और जब उसे पा लेता है तब हाथ में विजय का फुरेरा लहराते हुए एक दिन अकस्मात् उस कन्या के सामने अाकर खड़ा हो जाता है । कन्या के नयनों से गंगा बह निकलती है और उस लाल का दिल अपनी प्रियतमा की सूक्ष्म प्राणगति से लहराता है, कॉपता है, और शरीर ज्ञानहीन हो जाता है। बेबस होकर वह उसके चरणों में अपने आपको ३-तलवार की छाया में स्वर्ग बसता है। ७२