पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/७५

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कन्या-दान चूरप में कन्या जब अपना दिल ऊपर लिखे गए नियम से दान करती है तब वहाँ का गृहस्थ जीवन आनन्द और सुख से भर जाता है । जहाँ खुशामद और झूठे प्रेम से कन्या फिसली, थोड़ी ही देर के बाद गृहस्थाश्रम में दुख-दर्द और राग-द्वेध प्रकट हुए । प्रेम के कानून को तोड़कर जब यूरप में उलटी गंगा बहने लगी तब वहाँ विवाह एक प्रकार की ठेकेदारी हो गया और समाज में कहीं कहीं यह खयाल पैदा हुआ कि विवाह करने से कुँवारा रहना ही अच्छा है । लोग कहते हैं कि यूरप में कन्या-दान नहीं होता; परंतु विचार से देखा जाय तो संसार में कभी कहीं भी गृहस्थ का जीवन कन्या-दान के बिना सुफल नहीं हो सकता । यूरप के गृहस्थों के दुखड़े तब तक कभी न जायँगे जब तक एक बार फिर प्रेम का कानून, जिसको शेक्सपियर ने अपने “रामियो और जूलियट' में इस खूबी से दरसाया है, लोगों के अमल में न आवेगा । अतएव यूरप और अन्य पश्चिमी देशों में कन्या-दान अवश्य- मंव होता है । वहाँ कन्या पहले अपने आपको दान कर देती है; पीछे से गिरजे में जाकर माता, पिता या और कोई सम्बन्धी फूलों से सजी हुई दूल्हन को दान करता है। (The bride is given away in Europe.) 4 अाजकल पश्चिमी देशों में झूठी और जाहिरी शारीरिक श्राजादी के खयाल ने कन्या-दान की आध्यात्मिक बुनियाद को यूरप में गृहस्थों तोड़ दिया है । कन्या-दान की रीति जरूर प्रचलित है, की बेचैनी परन्तु वास्तव में उस रीति में मानो प्राण ही नहीं । कोई अखबार खोलकर देखो, उन देशों में पति और पत्नी के झगड़े वकीलों द्वारा जजों के सामने से होते हैं । और जज की मेज पर विवाह की सोने की अँगूठियाँ, काँच के छल्लों की तरह द्वेष के ५. यूरोप में वधू दे दी जाती है। ७५