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पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/७६

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कन्या-दान पत्थरों से टूटती हैं । गिरजे में कल के बने हुए जोड़े अाज टूटे और अाज के बने जोड़े कल टूटे । ऐसा मालूम होता है कि मौनोगेमी (स्त्री-व्रत ) का नियम, जो उन लोगों की स्मृतियो और राज-नियमों में पाया जाता है, उस समय बनाया गया था जब कन्या-दान आध्यात्मिक तरीके से वहाँ होता था और गृहस्थों का जीवन सुखमय था । भला सच्चे कन्यादान के यज्ञ के बाद कौन सा मनुष्य-हृदय इतना नीच और पापी हो सकता है । जो हवन हुई कन्या के सिवा किसी अन्य स्त्री को बुरी दृष्टि से देखे । उस कुरबान हुई कन्या की खातिर कुल जगत् की स्त्री-जाति से उस पुरुष का पवित्र सम्बन्ध हो जाता है । स्त्री-जाति की रक्षा करना और उसे अादर देना उसके धर्म का अङ्ग हो जाता है । स्त्री-जाति में से एक स्त्री ने इस पुरुष के प्रेम में अपने हृदय की इसलिये अाहुति दी है कि उसके हृदय में स्त्री-जाति की पूजा करने के पवित्र भाव उत्पन्न हों; ताकि उसके लिये कुलीन स्त्रियाँ माता समान, भगिनी समान, पुत्री समान, देवी समान हो जायँ । एक ही ने ऐसा अद्भुत काम किया कि कुल जगत् की बहनों को इस पुरुष के दिल की डोर दे दी। इसी कारण उन देशों में मौनोगेमी (स्त्री-व्रत ) का नियम चला । परन्तु आजकल उस कानून की पूरे तौर पर पाबन्दी नहीं होती। देखिए, स्वार्थ-परायणता के वश होकर थोड़े से तुच्छ भोगों की खातिर सदा के लिए कुँवारापन धारण करना क्या इस कानून को तोड़ना नहीं है। लोगों के दिल जरूर बिगड़ रहे हैं । ज्यों ज्यों सौभाग्यमय गृहस्थ-जीवन का सुख घटता जाता है त्यों त्यों मुल्की और इखलाकी वेचैनी बढ़ती जाती है। ऐसा मालूम होता कि यूरप की कन्याएँ भी दिल देने के भाव को बहुत कुछ भूल गई हैं। इसी से अलबेली भोली कुमारिकायें पारल्यामेंट के झगड़ों में पड़ना चाहती हैं; तलवार और बंदूक लटकाकर लड़ने मरने को तैयार ७६