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पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/९८

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पवित्रता रही हैं । इसके रूप पर अद्भुत तेज है । इसके नेत्र अाकाश को उठे हैं। पता नहीं किसको देख रहे हैं । इसका मस्तक चमक रहा है । पहचानो तौ यह कौन सपूत है ? (१०) समुद्र बीच में है, किसी की प्यारी बहन अपने देश में समुद्र के किनारे खड़ी है, और प्यारा वीर किसी जहाज़ को लेकर अन्य देशों में गया हुआ है । परन्तु यह बहन हर रोज उसके जहाज को देखने को अाशा में समुद्र के विशाल विस्तार को घंटों देखती रहती है। ज़रा इसकी आँख को पूरे अनुभव से देखना। कभी २ उस एक आँसू को भी देखना जो आंखों से झड़कर समुद्र के जल में लीन हो जाता है। हो सके तो इसको अपनी बहन जानकर अब अपने हृदय को भी आजमाना । यह भी पिघलता है कि नहीं ? वह जहाज़ आया । सीटी बजी । लंगर गिरा। भाई ने दूर से अपने रूमाल को लहरा २ कर हृदय में प्यारी बहन को नमस्कार की। बहन ने भी दूर से अपने पतले २ बाहु पसार अपने सुन्दर हाथों से अपने बीर का स्वागत किया। न्योछावर हुई । इतने में भाई बहन दोनों एक के गले लगकर रो पड़े। इस चित्र के नीचे लिखा था “पवित्रता का बादल" छम छम छम छम, रम झम, रम झम । स पिता सफर तै करके घर आया है । वह पुत्री दौड़ती बाहर आई है । साड़ी इस कन्या की सिर से उतर गई है, इस तेजी से दौड़ी है कि खुले केश पीछे २ रहे जाते हैं । मुख खुला है । बोल कुछ नहीं सकती। इतने में पिता उसे गले लगाकर ज्यों ही अपनी पुत्री के सिर पर प्यार देने झुका तो अांखों से मोतियों का हार झलककर उसके केशो पर बिखर गया । यह मोतियों का हार इस चित्र में क्या सुहावना लगता है ? (१२) सीताजो अयोध्याजी में अपने महल की सोड़ियों पर खड़ी हैं, और श्री लक्ष्मणजो धनुष बाण कन्धे पर रक्खे, सर झुकाए हाथ जोड़े (११) दूर दराज ६८