पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१६८

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ख्या २] सूर्ययम्मा का शिलालेस। -4AE में कुछ सिफे शामपा के पुष शर्यप` के भी प्रान्त, उत्तर में नेपाल राज्य पार परियम तथा यायय्य । उन पर गुप्त संवत्सर २१४ पर्यात् विषम- में स्थानेघर तया मालय-राज्य रहा होगा। इनमें शत् ११२६। इससे तथा गुप्त-संयस्सर के प्रयोग से से मगध राजानों से मुखर-नरेशों का घनिष्ठ सम्पन्ध शुमान किया माता है कि कुमारगुप्त के हाथों से था। मगध के दर्पगुप्त की षदिन हर्पगुप्ता प्रादिस्य- स दोकर ईशानया शीघ्र ही सुरपुर को यर्मा को प्यादी थी । भाग्धपति तो ईशानया से सार गया होगा। इसके प्रनन्तर तीन साल तक परास्त ही गुमा था | मध्य-प्रान्त में मुहर मिलने के वर्मा गुप्तों के अधीन रहा । पर कुमारगुप्त की फारमा उसे सीमा पर मिली हुई समझने में यिशेप कायु के पश्चात् उसने हुणे का परामय करके गुप्ता पाधा नहीं । नेपाल के एक राजा को मुसर-नरेशों जो लड़ाई की, जिसमें दामादरगुप्त माय गया। में से भोगधर्मा की छाकी तथा प्रादिस्यसेमगुप्त वर्मा का पुन अघन्तिया था । उसके भी की पात्री प्यादी थी । भीहर्षवर्धन की पहिन शर्च- के शानधर्मा तथा शर्ययर्मा के सिकों के साथ पर्मा के पात्र प्रहया की प्याही थी। माळय-राज ये गये है। यह प्रयन्तियां धीहर्षदेय की धदिन मै इस प्रहधर्मा को मार कर राज्यत्री को कैद न्यधी का ससुर होगा। किया था। पंचरित में इसी का वर्णन करते हुए पवर्मा का अन्यत्र कहाँ उल्लेप नहीं पाया पाप कयि सिराता है- ता। पर सम्मघमिशानया के पश्चात् मगरिमापि राम्पधी काबायसनिगडितरणा RE- भोसरी राम्य पिमत दो गया हो । यदि ऐसा दुमा नेप संपता काम्पले कारामा निविष्ठा ।. गा तो यप्रवर्मा, शार्दूलया तथा अनन्तया इससे यह तो स्पट ही है कि राम्पधी फनीज में मामक मीरपरी नरेश, जिनका उल्लेख गुमशिलादेन कैद की गई थी। पर यह कमीज किसके राज्य में नम्वर ४८,४९,५. में, है, इसी सूप्या घाली या, मालये के या मुखरो के पूर्वोक्त पाक्य से गया में दुप होगे। दोनो सम्भाग्य है । पर प्रागे घस कर पाण कषि

अयम इन मास्सरी राजामों की राजधानी कहाँ लिखता है-

ही १ पर्योक्त शिलालेनो में से कुछ तो मगध के देवभूयं गते रास्पबने गृहीते घ रुपमये "गस पार कुछ प्रयच मात में मिले है। शर्यधर्मा इससे जान पड़ता है कि मालयनास्य का प्रधान पीपरी की मुहर पासीरगढ़ में (पुरहानपुर के पास) मगर उस समय कुशस्थळ था। यह कुशस्थल मेसी है । पर उस मुहर की पहा माप्ति से महीं कहा मध्यदेश में कहीं रहा होगा, क्योंकि राजशेयर- मा सकता कि पार्यपर्मा का पम्य उस मान्स तक कपि ने कुशस्थसाधिपति की मध्य-देश-नरेन्द्र लिखा या ! पोंकि यह मुहर ताम्रपत्रों पर की गई जान है। कुशस्थल मध्य देश में, अर्थात् यिन्यपर्वत के पाती है । मार ताम्रपत्र बहुत दूर तक पसेमा समीप पा-सका एक पार भी प्रमाय है। यहीं सकते ६ । म स्टेखों के सिया मुस्पर-नरेशो कर से माग कर राज्याची विग्भ्याटषी में चली गई थी। उठेस मेपाठ के कुछ शिलालेखों में भी है। पाप इन सब प्रमाया से कान्यकुल पर्यात् कधीतही के हर्पचरिश में भी मुनर-रामानों का पर्मम है। मपरी भरेगों की राजपानी ग्राम पड़ती है। इम सप पात से यह अनुमाम किया मा सकता है यह लेख पारापी जिले में मिला है, यहाँ कि मुमर-राज्य के पूर्व में गुप्त लोगों का मागप सूपया शिकार पेल्ने गया था। इसका कथि पम्य रहा होगा, दक्षिण में मध्य-प्रान्त तथा प्रान्ध- मी गर्गयकटपासी है । अर्थात् घाघरा नदी मी