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सचाई की जड़

में लेन-देन ख़रीद-बिक्री या मांग और तैयारी के नियम का ज्ञान कुछ काम नहीं आता।

लौकिक शास्त्र के नियम गलत हैं, ऐसा कहने का कोई कारण नहीं। यदि व्यायाम-शिक्षक यह मान ले कि मनुष्य के शरीर में केवल मांस ही है, अस्थि-पञ्जर नहीं है और फिर नियम बनाये तो उसके नियम ठीक भले ही हों; पर वह अस्थि-पञ्जर वाले मनुष्य के लिए लागू नहीं हो सकते। उसी तरह लौकिक शास्त्र के नियम ठीक होने पर भी पारस्परिक भावना से बँधे हुए मनुष्य के लिए नहीं लागू हो सकते। यदि कोई व्यायाम कला विशारद कहे कि मनुष्य का मांस अलग कर उसके गेंद बनाये जा सकते हैं, उसे खींचकर उसकी डोरी बना सकते हैं और फिर यह भी कहे कि उस मांस में पुनः अस्थि-पञ्जर घुसा देने में क्या कठिनाई है, तो निःसन्देह हम उसे पागल कहेंगे, क्योंकि अस्थि-पञ्जर से मांस को अलग कर व्यायाम के नियम नहीं बनाये जा