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सचाई की जड़

एक ही ओर होता है; परन्तु इस विषय में वह कुछ नहीं समझते। सच तो यह है कि एक-दूसरे का सांसारिक स्वार्थ एक न होने पर भी एक-दूसरे का विरोधी होना या विरोधी बने रहना ज़रूरी नहीं है। घर में रोटी के लाले पड़े हैं। घर में माता और उसके बच्चे हैं। दोनों को भूख लगी है। खाने में दोनों के—माता और बच्चे के—स्वार्थ परस्पर विरोधी हैं। माता खाती है तो बच्चे भूखों मरते हैं और बच्चे खाते हैं तो माँ भूखी रह जाती है। फिर भी माता और बच्चों में कोई विरोध नहीं है। माता अधिक बलवती है तो इस कारण वह रोटी के टुकड़े को ख़ुद नहीं खा डालती। ठीक यही बात मनुष्य के परस्पर के सम्बन्ध के विषय में भी समझनी चाहिए।

थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कि मनुष्य और पशु में कोई अन्तर नहीं है। हमें पशुओं की तरह अपने-अपने स्वार्थ के लिए लड़ना ही चाहिए। तब भी बात नियम रूप में नहीं