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सचाई की जड़

की घटती-बढ़ती के नियम पर मनुष्य का व्यवहार न चलना चाहिए। उसका आधार न्याय का नियम है। इसलिए मनुष्य को समय देखकर नीति या अनीति जिससे भी बने, अपना काम निकाल लेने का विचार एकदम त्याग देना चाहिए। अमुक प्रकार से आचरण करने पर अन्त में क्या फल होगा इसे कोई भी सदा नहीं बतला सकता, परन्तु अमुक काम न्याय-संगत है या न्याय-विरुद्ध यह तो हम प्रायः सदा जान सकते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि नीति-पथ पर चलने का फल अच्छा ही होना चाहिए। हाँ, यह फल क्या होगा, किस तरह मिलेगा—यह हम नहीं कह सकते।

नीति-न्याय के नियम में पारस्परिक स्नेह-सहानुभूति का समावेश हो जाता है और इसी भावना पर मालिक-नौकर का सम्बन्ध अवलम्बित होता है। मान लीजिए, मालिक नौकरों से अधिक-से-अधिक काम लेना चाहता है। उन्हें