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सर्वोदय

जरा भी दम नही लेने देता, कम तनख्वाह देता है, दरवे जैसी कोठरियो मे रखता है। सार यह कि वह उन्हें इतना ही देता है कि वह किसी तरह अपना प्राण शरीर मे रख सके। कुछ लोग कह सकते है कि ऐसा करके वह कोई अन्याय नहीं करता। नौकर ने निश्चित तनख्वाह मे अपना सारा समय मालिक को दे दिया है और वह उससे काम लेता है। काम कितना कडा लेना चाहिए, इसकी हद वह दूसरे मालिकों को देखकर निश्चित करता है। नौकर को अधिक वेतन मिले तो दूसरी नौकरी कर लेने की उसे स्वतन्त्रता है। इसीको लेन-देन का नियम बनाने वाले अर्थशास्त्र कहते है। और उनका कहना है कि इस तरह कम-से-कम दाम मे अधिक-से- अधिक काम लेने मे मालिक को लाभ होता है और अन्त मे इससे नौकर को भी लाभ ही होता है।

विचार करने से हम देखेंगे कि यह बात