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सचाई की जड़

ठीक नहीं है। नौकर अगर मशीन या कल होता और उसे चलाने के लिए किसी विशेष प्रकार की ही शक्ति की आवश्यकता होती तो यह हिसाब ठीक बैठ सकता था, परन्तु यहाँ तो नौकर को संचालित करने वाली शक्ति उसकी आत्मा है। और आत्मा का बल अर्थ-शास्त्रियों के मारे नियमों पर हड़ताल फेर देता है—उन्हें गलत बना देता है। मनुष्यरूपी मशीन में धन-रूपी कोयला झोंककर अधिक-से-अधिक काम नहीं लिया जा सकता। वह अच्छा काम तभी दे सकती है जब उसकी सहानुभूति जगाई जाय। नौकर और मालिक के बीच धन का नही, प्रीति का बन्धन होना चाहिए।

प्रायः देखा जाता है कि जब गालिक चतुर और मुस्तैद होता है नव नौकर अधिकतर दवाव के कारण ज्यादा काम करता है। इसी तरह जब मालिक आलसी और कमजोर होता