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सर्वोदय

हानि पहुँचाता है उसी तरह एक स्थान में धन का सञ्चित होना भी राष्ट्र की हानि का कारण हो जाता है।

मान लीजिए कि दो खलासी जहाज के टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाने से एक निर्जन किनारे पर आ पड़े हैं। वहाँ उन्हें खुद मेहनत करके अपने लिए खाद्य पदार्थ उत्पन्न करने पड़ते हैं। यदि दोनों स्वस्थ रहकर एक साथ काम करते रहे तो अच्छा मकान बना सकते हैं, खेत तैयार कर खेती कर सकते हैं और भविष्य के लिए कुछ बचा भी सकते हैं। इसे हम सच्ची सम्पत्ति कह सकते हैं और यदि दोनों अच्छी तरह काम करें तो उसमें दोनों का हिस्सा बराबर माना जायगा। इस तरह इनपर जो शास्त्र लागू होता है वह यह है कि उन्हें अपने परिश्रम का फल बांट लेने का अधिकार है। अब मान लीजिए कि कुछ दिनों के बाद इनमें से एक आदमी को असन्तोष हुआ, इसलिए उन्होंने