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सर्वोदय

रहा तबतक उसे अपने काम का लाभ नहीं मिला। यदि हम मानले कि दूसरा आदमी खूब परिश्रमी है तब भी इतनी बात तो पक्की ठहरी कि उसने अपना जितना समय बीमार के खेत में लगाया उतना समय अपने खेत में लगाने से उसे वञ्चित रहना पड़ा। फल यह हुआ कि जितनी सम्पत्ति दोनों की मिलकर होनी चाहिए थी उनमें कमी हो गई।

इतना ही नहीं, दोनों का सम्बन्ध भी बदल गया। बीमार आदमी दूसरे आदमी का कर्जदार होगया। अब वह अपनी मेहनत देने के बाद ही, मज़दूरी करके ही अपना अनाज ले सकता है। मान लीजिए कि उस चगे आदमी ने बीमार आदमी से लिखाये हुए इकरारनामें का उपयोग करने का निश्चय किया। यदि वह ऐसा करता है तो वह पूर्ण रूप से विश्राम ले सकता‌ है—आलसी बन सकता है। वह चाहे तो बीमारी से उठे हुए आदमी से दूसरे इकरारनामे