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सर्वोदय

है और उनके आस-पास बहुत-सा पानी जमा हो जाने से जहरीली हवा पैदा होती हैं। इन्हीं नदियों में बाँध-बाँध कर, जिधर आवश्यकता हो उधर उनका पानी ले जाने से वही पानी जमीन को उपजाऊ और आस-पास की वायु को उत्तम बनाता है। इसी तरह धन का मन-माना व्यवहार होने से बुराई बढ़ती है, गरीबी चढ़ती है। सारांश यह है कि वह धन विष तुल्य हो जाता है। पर यदि उसी धन की गति निश्चित कर दी जाय और उसका नियम पूर्वक व्यवहार किया जाय तो बांधी हुई नदी की तरह वह सुखप्रद बन जाता है।

अर्थ-शास्त्री धन की गति के नियन्त्रण के नियम को एक दम भूल जाते है। उनका शास्त्र केवल धन प्राप्त करने का शास्त्र है। परन्तु धन तो अनेक प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है। एक जमाना ऐसा था जब यूरप में धनिक को विष देकर लोग उसके धन से स्वयं धनी बन