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अदल इन्साफ़।

जाते थे। आजकल गरीब लोगों के लिए जो न्याय पदार्थ तैयार किये जाते में उनमें व्यापारी मिलावट कर देते है। जैसे दूध में सुहागा, आटे में आलू, कहवे में 'चीकरी', मक्खन में चरबी इत्यादि। यह भी विष देकर धनवान होने के समान ही है। क्या इसे हम धनवान होने की कला या विज्ञान कह सकते हैं?

परन्तु वह न समझ लेना चाहिए कि अर्थ शास्त्री निजी लूट से ही बनी होने की बात कहते है। उनकी ओर से यह कहना ठीक होगा कि उनके शास्त्र कानून-संगत और न्याय युक्त उपायों से धनवान होने का है। पर इस ज़माने में यह भी होता कि अनेक बातें जायज़ होते हुए भी बुद्धि में विपरीत होती है। इसलिए न्याय पूर्वक धन अर्जन करना ही सच्चा रास्ता कहा जा सकता है। और यदि न्याय से ही पैसा कमाने की बात ठीक हो तो न्याय अन्याय का विवेक उत्पन्न करना मनुष्य का पहला काम होना