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सर्वोदय

चाहिए। केवल लेन-देन के—व्यावसायिक-नियम से काम लेना या व्यापार करना ही काफी नहीं है। यह तो मछलियों, भेड़िये और चूहे भी करते है बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, चूहा छोटे जीव जन्तुओं को खा जाता है और भेड़िया आदमी तक को खा डालता है। उनका यही नियम हैं, उन्हें दूसरा ज्ञान नहीं है। परन्तु ईश्वर ने मनुष्य को समझ दी है, न्याय बुद्धि दी है। उसके द्वारा दूसरों को भक्षण कर—उन्हें ठग कर, उन्हें भिखारी बना कर—इसे धनवान न होना चाहिए।

ऐसी अवस्था में हमे देखना है कि मजदूरों को मजदूरी देने का न्याय क्या है?

हम पहले कह चुके हैं कि मजदूर की उचित पारिश्रमिक तो यही हो सकता है कि उसने जितनी मेहनत हमारे लिए की हो उतनी ही मेहनत, जब उसे आवश्यकता हो, हम भी उसके लिए कर दे। यदि उसे कम मेहनत—