पृष्ठ:सर्वोदय Sarvodaya, by M. K. Gandhi.pdf/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३
अदल इन्साफ़।

मजदूरी दी जाती है। मैंं उचित मजदूरी दूँ तो मेरे पास व्यर्थ का धन इकट्ठा न होगा मैं भोग विलास में रुपया खर्च न करूँगा और मेरे द्वारा गरीबी न बढ़ेगी। जिसमें मैं उचित दाम दूँगा यह दूसरों को उचित दाम देना सीखेगा इस तरह न्याय का सोता सीखने के बदले ज्यों ज्यों आगे बटेगा त्यों त्यों उसका जोर बढ़ता जायगा। और जिस राष्ट्र में इस प्रकार की न्याय-बुद्धि होगी वह सुखी होगी और उचित रूप से फूले फलेगा।

इस विचार के अनुसार अर्थशास्त्री झूठे ठहरते है। उनका कथन है कि ज्यों ज्यों प्रतिस्पर्धा बढ़ती है त्यों त्यों राष्ट्र समृद्ध होता है। वास्तव में यह विचार भ्रान्त है। प्रतिस्पर्धा का उद्देश्य है मजदूरी की दर घटाना।

उसमें धनवान अधिक धन इकट्ठा करता है और गरीब अधिक गरीब हो जाना है। ऐसी प्रतिस्पर्धा चढ़ा-उतरी से अन्त में राष्ट्र का