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अदल इन्साफ़।

चल रही है और उसके फलस्वरूप धोखेबाजी, दगा, फरेब, चोरी आदि अनीतियाँ बढ़ गई है। दूसरी और जो माल तैयार होता है वह ख़राब और सड़ा हुआ होता है। व्यापारी चाहता है कि मैं खाऊँ, मजदूर चाहता है कि मैं बीच से ही कमा लूं! इस प्रकार व्यवहार बिगड़ जाता है, लोगों में खटपट मची रहती है, गरीबों का जोड़ बढ़ता है, हड़तालें बढ़ जाती है महाजन ठग बन जाते हैं, ग्राहक नीति का पालन नहीं करते। एक अन्याय से दूसरे अनेक अन्याय उत्पन्न होते हैं और अंत में महाजन, व्यापारी, और ग्राहक सभी दुःख भोगते हैं और नष्ट हो जाते हैं। जिस राष्ट्र में ऐसी प्रथायें प्रचलित होती है वह अन्त में दुःख पता है और उसका धन ही विष सा हो जाता है।

"जहाँ धन ही परमेश्वर है वहां सच्चे
परमेश्वर को कोई नहीं पूजता।"