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सर्वोदय


अंग्रेज जाति मुँह में तो कहती है कि धन और ईश्वर में परस्पर विरोध है, गरीब ही के घरमें ईश्वर वास करता है, पर व्यवहारमें वह धन को सर्वोच्च पद देते है। अपने धनी आदमियो की गिनती करके अपने को सुखी मानते है। और अर्थशास्त्री शीघ्र धनोपार्जन करने के नियम बनाते है, जिन्हें सीख कर लोग धनवान हो जाँय। सच्चा शास्त्र न्यायबुद्धि का है। प्रत्येक प्रकार की स्थिति में न्याय किस प्रकार किया जाय, नीति किस प्रकार निबाही जायँ,—जो राष्ट्र इस शास्त्र को सीखता है वही सुखी होता है, बाकी सब बाते वृथा प्रयास है, "विनाश काले विपरीत बुद्धि" के समान है। लोगों को जैसे भी होसके पैसा पैदा करने की शिक्षा देना उन्हें उलटी अक्ल सिखाने जैसा ही है।