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सत्य क्या है?

पिछले तीन प्रकरणों में हम देख चुके हैं कि अर्थशास्त्रियों के जो साधारण नियम माने जाते हैं वह ठीक नहीं है। उन नियमों के अनुसार आचरण करने पर व्यक्ति और समाज दोनों दुःखी होते हैं। गरीब अधिक गरीब बनता है और पैसे वाले के पास अधिक पैसा जमा होता है, फिर भी दोनों में से एक भी सुखी होता या रहता नहीं।

अर्थशास्त्री मनुष्यों के आचरण पर विचार न कर अधिक पैसा बटोर लेने को ही अधिक उन्नति मानते हैं और जनता के सुख का आधार केवल धन को बताते हैं। इसलिए वह सीखते हैं कि कला कौशल आदि वृद्धि से कितना अधिक धन इकट्ठा हो सके उतना उतना ही