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सत्य क्या है?

काम करने के लिए एक पल भी नहीं मिलता। धनिकों को देखकर वह भी धनी होना चाहते हैं। धनी न हो पाने पर खिन्न होते हैं, झुँझलाते हैं। पीछे विवेक खोकर, अच्छे रास्ते से धन न मिलते देख दगा-फरेब से पैसा कमाने का वृथा प्रयास करते हैं। इस तरह पैसा और मेहनत दोनों बर्बाद हो जाते हैं, या दगा-फरेब फैलाने में उनका उपयोग होता है।

वास्तव में सच्चा श्रम वही है जिससे कोई उपयोगी वस्तु उत्पन्न हो। उपयोगी वह है जिससे मानव जाति का भरण-पोषण हो। भरण-पोषण वह है जिससे मनुष्य को यथेष्ट भोजन-वस्त्र मिल सके या जिससे वह नीति के मार्ग पर स्थिर रहकर आजीवन सत्कर्म करता रहे। इस दृष्टि से विचार करने से बड़े-बड़े आयोजन बेकार माने जायँगे। संभव है कि कल-कारखाने खोलकर धनवान होने का मार्ग ग्रहण करना पाप-कर्म मालूम हो। पैसा पैदा