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सर्वोदय

ही सच्चा धन है। जिस राष्ट्र में नीति है वह धन सम्पन्न है। यह जमाना भोग-विलास का नही है। हरेक आदमी को जितनी मेहनत मजदूरी हो सके उतनी ही करनी चाहिए। पिछले उदाहरणों में हम देख चुके है कि जहाँ एक आदमी आलसी रहता है वहाँ दूसरे को दूनी मेहनत करनी पड़ती है। इङ्गलैण्ड में जो बेकारी फैली हुई है उसका यही कारण है। कितने ही पास में धन हो जाने पर कोई उपयोगी काम नहीं करते अंतः उनके लिए दूसरे आदमियों को परिश्रम करना पड़ता है। यह परिश्रम उपयोगी न होने के कारण करने वाले का इससे लाभ नही होता। ऐसा होने से राष्ट्र को पूँजी घट जाती है। इसलिए ऊपर से यद्यपि यही मालूम होता है कि लोगों को काम मिल रहा है, परन्तु भीतर से जाँच करने पर मालूम होता है कि अनेक आदमियों को बेकार बैठना पड़ रहा है। पीछे ईर्षा उत्पन्न होती है, असन्तोष की