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उपसंहार
जड़ जमती है, और अन्त में मालदार गरीब, मालिक मजदूर—दोनों अपनी मर्यादा त्याग देते हैं। जिस तरह बिल्ली और चूहे में सदा अनबन रहनी है उसी तरह अमीर और गरीब, मालिक और मजदूर में दुश्मनी हो जाती है और मनुष्य मनुष्य न कह कर पशु की अवस्था में पहुँच जाता है।
उपसंहार
महान रस्किन के लेखों का खुलासा हम देख चुके। ये लेख यद्यपि कितने ही पाठकों को नीरस मालूम होंगे, तथापि जिन्होंने इसे एक बार पढ़ लिया हो उनसे हम दुबारा पढ़ने की सिफ़ारिश करते हैं। 'इण्डियन ओपिनियन'