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उपसंहार



प्रजातन्त्र के प्रत्यक्ष—राष्ट्रपति—को मारनेवाला, फ्रैंच ही तो था। अमेरिका के राष्ट्रपति क्लीव लैण्डक को मारनेवाला एक अमेरिकन ही था। इसलिए हमें उचित है कि हम लोग उतावली करके बिना विचारे पाश्चात्य राष्ट्रों का अन्ध अनुकरण कदापि न करें।

जिस तरह पाप कर्म से—अँग्रेजों को मारकर सच्चा स्वराज्य नहीं प्राप्त किया जा सकता, उसी तरह भारत में कारखाने खोलने में भी स्वराज्य नहीं मिलने का। रस्किन ने इस बात को पूरी तरह साबित कर दिया है कि सोना चांदी एकत्र हो जाने में कुछ राज्य नहीं मिल जाता। यह स्मरण रखना चाहिए कि पश्चिम में सुधार हुए अभी सौ ही वर्ष हुए हैं, बल्कि सच पूछिए तो पचास ही कहे जाने चाहिएँ। उतने ही दिनों में पश्चिम की जनता वर्णसकरगी होती दिखाई देने लगी है। हमारी यही प्रार्थना है कि यूरोप की भी अवस्था भारत की