पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१०६

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और कहा-"हजरत बादशाह सलामत की ओर से मैं आपका आगरे में स्वागत करता हूँ।" लेकिन शिवाजी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया, न कुछ जवाव ही दिया । वह मुंह फेर कर रामसिंह से बातें करने लगे । उन्होंने जरा मुखलिसखां को सुनाकर कहा-"ये मुखलिसखां कोई बहादुर आदमी हैं ?" इस पर मुखलिसखां चिढ़ गया। उसने कहा-"क्यों जनाब, आप क्या आगरे में बहादुरों की तालाश में आए हैं ?" "शायद, मैंने सुना था कि आगरे में एक खेत है, जिसमें बहादुर पैदा होते हैं।" रामसिंह ने वात बढ़ती देखकर कहा-"रात हो रही है। मेरी समझ में तो अब हमें चलना चाहिए । कल बादशाह की सालगिरह का जुलूस है। उसमें आपको दरबार में हाजिर होना होगा। कल ही दरबारे शाही में आप शहनशाह को सलाम करके खिलत और मनसब हासिल कर लीजिए।" "कुंवर रामसिंह, मैं चाहता हूँ सब बातों पर अच्छी तरह विचार कर लिया जाय । बादशाह के मन में कोई दगा हो तो मुझसे कह दो।" "महाराज, प्रथम तो पिताजी की आज्ञा है, दूसरे हम राजपूत अपनी जान पर खेल जाएंगे यदि आपका बाल बाँका भी हुआ। आप इत्मीनान से आगरे पधारिए, असल बात यह है कि बादशाह ने आपको अपने मतलब से बुलाया है। वह आपकी खूब खातिर करेगा और आपकी सब इच्छाएं पूरी करेगा।" "लेकिन उसका मतलब क्या है ?" "क्या पिताजी ने आपको नहीं बताया था ?" "उन्होंने कहा था कि बादशाह शाहे ईरान पर चढ़ाई करना १०४