पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/११

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शाहजी बड़े अवसरवादी थे। वे अवसर कभी नहीं चूकते थे। इस समय उनका नाम इतना प्रसिद्ध हो गया था कि बीजापुर के आदिलशाह ने उनकी पूरी आवभगत की। यह वह समय था जब फतहखा ने मुगल सेनापति महावतम्खा से मिलकर बीजापुर की राजवानी दौलता- बाद पर चढ़ाई की थी । शाहजी ने इस युद्ध में बड़ी वीरता प्रकट की। वाद में जव वीजापुर और फतहखां में सन्धि हुई तो सन्धि की एक शर्त यह भी थी कि शाहजी को वीरता के उपलक्ष्य में पुरस्कार मिले । फतहखाँ ने वीजापुर से संधि होते ही मुगलों पर धावा बोल दिया । परन्तु फतहखाँ को मुंह की खानी पड़ी और महावतखाँ ने उसे कैद कर लिया। अहमदनगर राज्य का मुगल साम्राज्य में विलय हो गया। अब महावतखाँ ने यह योजना बनाई कि शाहजी को भी जीत लिया जाय तो बीजापुर और अहमदनगर के दोनों राज्यों पर मुगलों का अधिकार हो जाय। उसने अवसर पाकर शाहजी की पत्नी जीजावाई और वालक शिवाजी को पकड़ लिया । परन्तु मराठों ने उन्हें छुड़ाकर कोन्डाना दुर्ग में भिजवा दिया। इसी समय आगरे में साम्राज्ञी मुमताजमहल का देहान्त हो गया और शाहजहाँ ताजमहल निर्माण में व्यस्त होगया। इधर अव- सर पाकर शाहजी ने अब दूसरा पैतरा वदला। फतहखाँ कैद हो चुका था और उसने जो बादशाह तख्त पर बैठाया था, उसे भी गिरफ्तार करके महावतखाँ ने ग्वालियर के किले में भेज दिया था। शाहजी ने तत्काल अहमदनगर के शाही खानदान के एक अल्प-वयस्क वालक को सिंहासन पर बैठाकर उसका राज्याभिषेक कर दिया और पूना तथा चाकण से लेकर बालाघाट तक के सारे प्रदेश तथा गुन्नूर के आस-पास का सारा निजामी इलाका छीन कर अपने अधिकार में कर लिया और जुन्नर शहर को राजधानी बनाकर उसी सुलतान के नाम पर शासन करना प्रारम्भ कर दिया। बीजापुर राज्य में इस समय दो बलशाली सामन्त थे-अदरुल्लाखाँ Ĉ