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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१२

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और मुन्दुपंत । दोनों ही शाहजी के समर्थक थे। गुप्त रूप से वीजापुर का शाह भी उनका समर्थक और सहायक था। इन सब बातों को सुन- कर शाहजहाँ बहुत ऋद्ध हो उठा । उसका वहुत रुपया और समय दक्षिण में व्यय हुआ था। बीजापुर इस समय भी मुगलों से उलझा हुआ था। अनः उसे शाहजी जैसे सुलझे हुए सेनापति की सहायता अपेक्षित थी। उधर मुगल बादशाह दो पीढ़ियों से दक्षिण की सिरदर्दी उठा रहे थे । इन सब घटनाओं ने शाहजी को सब उत्तरी-दक्षिणी शक्तियों का केन्द्र बना दिया । अन्ततः शाहजहां ने ४० हजार सैन्य देकर शाइस्ताखाँ और अलीवर्दीखों को दक्षिण भेजा । उन्होंने दक्षिण की मुगल सेना से मिलकर वीजापुर और शाहजी दोनों ही को जड़-मूल से खोद फेंकने का निश्चय किया। शाहजी ने तीन वरस तक इस संयुक्त मोर्चे से लोहा लिया । बहुत-से किले और इलाके शाहजी के हाथ से निकल गए, पर शाहजी को पकड़ने के उनके सब प्रयल विफल हुए। वह लड़ते हुए कोंकण तक चले गए । अन्ततः बीजापुर ने शाहजहाँ से संधि कर ली और उस संधि के अनुसार शाहजी ने भी वालक शाह को मुगलों को सौंपकर बीजापुर के अली आदिलशाह की नौकरी कर ली । बीजापुर ने शाहजी का अच्छा सत्कार किया। उन्हें उनकी पूरी जागीर दे दी गई जिसमें पूना की जागीर भी सम्मिलित थी। वाद में कुहार-रूसकटी-बंगलौर-वालापुर और सूमा भी उनके अधिकार में आ गए और वरार के २२ गाँवों की देशमुखी भी उन्हें देदी गई । इस प्रकार शाहजी को बहुत-सी जागीर और इलाका मिल गया और वे एक प्रकार से राजा की भाँति रहने लगे। शिवाजी शाहजी का पहिला विवाह जीजावाई के साथ हुआ था। जीजावाई की पहिली संतान शम्भाजी थे, वह अपने पिता के साथ ही रहते थे। १०