शिवाजी, शाहजी और जीजाबाई के दूसरे पुत्र थे । इनका जन्म जुन्नर शहर के पास शिवनेर के पहाड़ी किले में सन् १६२७ में हुआ इस समय शाहजी और उनके श्वसुर लक्खूजी जादौराय एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ रहे थे । जादोराय मुगलों से मिल गए थे, पर शाहजी अपनी पुरानी सरकार के ही साथ थे। इस पैतृक झगड़े के कारण जीजाबाई और शाहजी में वैमनस्य हो गया। इसी समय जीजाबाई और उनके शिशु पुत्र को मुसलमानों ने कब्जे में कर लिया। जीजाबाई को किसी तरह कोन्डाना दुर्ग में भेज दिया गया जहाँ वह एक प्रकार से नजरबन्द रहती थीं, पर उन्होंने अपने पुत्र को छिपा दिया ताकि वह मुसलमानों के हाथ न लगे । आजकल जब कि पाँच-छः वर्ष के बच्चे खेल-कूद में मस्त रहते हैं, तब ६ वर्ष के शिवाजी मुसलमानों के भय से इधर-उधर छिपते फिर रहे थे। सन् १६३६ तक शिवाजी अपने पिता का मुख तक न देख सके । सन् १६३० ही में शाहजी ने एक दूसरे खानदान में विवाह कर लिया था। शाहजी जब फिर बीजापुर राज्य की नौकरी में गए तो उस समय शिवाजी की आयु १० वर्ष की थी। शाहजी बीजापुर के लिए नए प्रदेश जीतने और अपने लिए नई जागीर प्राप्त करने के लिए तुङ्ग- भद्रा और मैसूर के पठार की ओर बढ़े और वहाँ से मद्रास के समुद्र तट की ओर बढ़ गए । इस चढ़ाई के बाद उन्होंने जीजावाई और शिवाजी को मुक्त किया और आकर पहली बार पुत्र का मुंह देखा और उसका विवाह किया। शिवाजी का विवाह करके वे कर्नाटक की लड़ाई को प्रस्थान कर गए और पत्नी तथा पुत्र को अपनी जायदाद के कारभारी दादाजी कोंगदेव की देखरेख में पूना भेज दिया; और अपनी दूसरी पत्नी तुकावाई और उसके पुत्र व्यंकोजी को अपने साथ रखा। पति की इस उपेक्षा का जीजाबाई के मन पर भारी प्रभाव पड़ा, और उनकी वृत्ति अन्तर्मुखी होकर धार्मिक हो गई, जिसका प्रभाव शिवाजी पर भी पड़ा। इस समय शिवाजी के साथ खेलने के लिए न कोई बालक साथी था, न भाई-बहन
पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१३
दिखावट