पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यह मर्ज अक्सर होते देखा गया है। अब सरदार, क्या तुझे जागते हुए भी ख्वाब आते हैं और तू उन पहाड़ियों और दरों को देखता है जिनमें तूने अपना बचपन बिताया है ?" शिवाजी चोंक पड़े। उन्होंने कहा-"क्या यह भी कोई मर्ज है ?" "वड़ा भारी मर्ज है । मैं एक दवा देता हूँ। अगर तुम वाकई बीमार हो तो अच्छे हो जाओगे और मक्कर कर रहे हो तो गायब हो जानोगे। अस्तख फाप्रकन मफलातून । समझा ? ये इल्म की बातें हैं।" शिवाजी ने झपटकर हकीम की डाढ़ी नोंच ली। डाढ़ी शिवाजी के हाथ में रह गई और सामने हकीमजी के स्थान पर तानाजी का चेहरा निकल आया। शिवाजी हक्के-बक्के होकर तानाजी का मुंह ताकने लगे। तानाजी ने कहा-"मालीखौलिया भी है। किताब में लिखा है उल-उल्ला-वदजुल्ला ।" यह कहकर डाढ़ी छीन कर दीवार की ओर मुंह फेर कर डाढ़ी मुंह पर जमा ली। शिवाजी चुपचाप पलंग पर पड़ रहे । हकीम साहब ने फिर पास वैठकर नाड़ी पकड़ ली। उन्होंने कहा- "क्यों महाराज, हकीम से ऐसी बेअदबी ?" इसके बाद वे खिल- खिला कर हंस पड़े। शिवाजी ने भी हंसकर कहा- "कभी-कभी हकीमों का भी इलाज करना पड़ता है।" कुछ देर तक दोनों धीरे-धीरे बातचीत करते रहे। फिर बाहर आकर और चार मुहर फौलादखां के हाथ पर रखकर कहा-"मरीज जल्द अच्छा होगा । जरा हमारी तारीफ करना । कल हम फिर पाएंगे।" यह कह कर हकीम साहब तेजी से चले गए। १२२