पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१२५

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1 पलायन प्रसिद्ध हो गया कि शिवाजी अच्छे हो रहे हैं, पर मुलाकातियों के आने की मनाही है। शिवाजी के अच्छे होने की खुशी में बड़े-बड़े झावे भर कर मिठाइयाँ मन्दिरों, ब्राह्मणों और गरीबों को बांटी जाने लगीं। देवालयों में पूजन हुए । मित्रों ने मुबारकवादियाँ भेजी। शिवाजी ने बड़े-बड़े अमीरों, मुल्लाओं और मस्जिदों में भी मिठाइयाँ भेजीं । सूफी, मुल्ला, पीर, शाह सभी के यहाँ. मिठाई पहुँचने लगी। रोज बड़े-बड़े खोंचे भरकर आते और वाहर जाते थे। प्रत्येक खोंचा तीन हाथ लम्बा होता था। उसे दस बारह आदमी मिलकर उठाते थे। कई दिन यह सिलसिला चलता रहा। " हकीम साहेब भी बराबर हादी फौलादखां की मुट्ठियां गर्म करते थे । वह बहुत खुश था । एक झावा भर मिठाई उसके घर भी पहुंच चुकी थी। अब वह ज्यादा देखभाल नहीं करता था। अन्त में एक दिन तानाजी ने आकर कहा-“बस महाराज, आज सूर्यास्त के बाद ।" "क्या हमारे सब सैनिक महाराष्ट्र पहुँच चुके ?" “जी हां, वहां सब कुछ तैयार है।" "यहां का इन्तजाम ?" "सब ठीक है। मथुरा-वृन्दावन से काशी तक हमारे आदमी छद्म वेश में जगह-जगह तैनात आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।" हकीम साहेब चले गए और सूर्यास्त होते ही आठ झावे बाहर निकले–एक-एक में शिवाजी व शम्भाजी छिपे थे। वे सकुशल नगर से बाहर निकल गए। तानाजी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। वहां एक निर्जन स्थान में टोकरों को रख कर ढोने वालों को वहाँ से विदा कर < १२३