पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१२६

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. दिया गया। शिवाजी और उनके पुत्र टोकरों से निकलकर द्रुत गति से चुपचाप एक ओर को चल दिए। आगरा से छः मील दूर एक गांव में उनके विश्वासी वीराजी रावजी न्यायाधीश घोड़ों सहित उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। जल्दी-जल्दी कुछ सलाह सबने की और दल तुरन्त दो टुकड़ियों में बंट गया। शिवाजी, शम्भाजी, उनके तीन अधिकारी वीराजी रावजी, दत्ता त्रिम्बकराव रघुमित्र ने मथुरा की ओर प्रस्थान किया, बाकी मराठे महाराष्ट्र की ओर चल खड़े हुए। आगरा में रात भर किसी को सन्देह नहीं हुआ, पहरेदारों ने झरोखे से झांककर हर बार देखा। शिवाजी पलंग पर सो रहे हैं। उनका एक हाथ नीचे लटक रहा है, जिसमें सोने का कंगन पड़ा है। वास्तव में हीराजी फर्जन्द उनके स्थान में सो रहे थे। एक सेवक बैठा उनके पांव दबा रहा था। एक पहर दिन चढ़ने पर पहरेदारों ने फिर देखा कि आज अभी तक शिवाजी सो रहे हैं। कुछ देर बाद हीराजी फर्जन्द और वह सेवक बाहर आए उन्होंने कहा- "शोर मत करो। हमारे महाराज के सिर में दर्द है, हम हकीम साहेब के यहां जाते हैं।" जब दो प्रहर दिन चढ़ने पर भी कुछ हलचल नहीं नजर आई और शिवाजी से भेंट करने भी कोई नहीं आया तब पहरेदारों ने भीतर घुसकर देखा कि चिड़िया उड़ गई है। इस वक्त फौलादखां शिवाजी की भंगमिश्रित मिठाई खाकर गहरी नींद में खर्राटे ले रहा था। वह जगाया गया । कैदी के फरार होने की खबर सुनकर हक्का-बक्का हो गया। पहले तो खौफ के मारे उसकी अक्ल चकराने लगी। बाद में वह बादशाह को खबर देने दौड़ा। पर बादशाह तक समाचार पहुँचते-पहुँचते तीसरा पहर हो गया। अब तक शिवाजी को पूरे २८ घण्टे का समय मिल चुका था और वे बिना एक क्षण रुके काशी की ओर उड़े चले जा रहे थे। १२४