पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१२७

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वादशाह सुनकर आग बबूला हो गया। इस घटना के कुछ दिन पूर्व ही महाराज जयसिंह की मृत्यु की खबर आगरे आई थी। कुंवर रामसिंह अभी सूतक ही मना रहे थे और हकीकत तो यह थी कि वे एक सप्ताह से शिवाजी से मिले ही न थे। पर बादशाह का सारा गुस्सा रामसिंह पर उतरा। उसने रामसिंह का किले में आना ही बन्द कर दिया और मासिक वेतन भी घटा दिया। हादी फौलादखां को भी शहर के कोतवाल के पद से च्युत कर दिया गया। ४७ मथुरा से काशी बादशाह ने बहुत दूत चारों ओर दौड़ाए, पर शिवाजी की वह धूल भी न पा सका। शिवाजी, शम्भाजी, वीराजी रावजी, दत्ता त्र्यम्बक एवं रघुनाथ मराठा-ये पाँचों व्यक्ति द्रुत गति से घोड़ों पर सवार हो निर्विघ्न मथुरा पहुँच गए । वहाँ उनके सहायक साथी प्रथम ही से मुस्तैद थे। तानाजी ने अपने साथियों के साथ अभी छद्म वेश में आगरे ही में रहने का निश्चय किया । मथुरा में मोराजी पन्त की ससुराल थी । वहाँ उनके साले कृष्णजी रहते थे। शिवाजी को मथुरा पहुँचने में छः घण्टे लगे। वे सब कृष्णजी के घर सकुशल पहुंच गए। इस समय ४०-५० आदमी यहाँ और एकत्र थे.। वहाँ शिवाजी ने डाढ़ी मुंडाई, वस्त्र उतार डाले और शरीर पर राख मलकर निहंग साधुओं का वेश बनाया। कुछ जवाहरात पोली छड़ियों में छिपाए, तथा अशर्फियाँ गुदड़ी में सी ली और प्रयाग की ओर प्रस्थान किया। इस समय शिवाजी ने बड़ी चतुराई से अपने साथ केवल दो. विश्वस्त सहचर वीराजी . रावजी और रघुनाथ १२५